मौन...the best language worldwide
Sunday, August 25, 2024
Sunday, May 19, 2024
अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी क्या
अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी क्या
जान बूझ कर जीवन ख़राब करोगी क्या?
जब चले ही जाना है मुझसे दूर एक दिन
फिर मेरे ख्वाबों में आकर करोगी क्या ?
मैं तो तुमको रात दिन प्यार कर सकता हूँ
पर तुम इतने प्यार का आख़िर करोगी क्या ?
तूम वो नशा हो जिसे देख कर झूमते हैं लोग
“मौन” तुम आख़िर शराब पीकर करोगी क्या ?
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
Tuesday, January 16, 2024
Tuesday, June 13, 2023
आँखे
आँखें भारी भारी रहती है
तेरी यादें तारी रहती है
उनके हाथों में फूल होते है
बाजू में कटारी रहती है
उसकी तो फितरत है लड़ना
अपनी भी तैयारी रहती है
उन माँ बापों की हालत पूछो
जिनकी बहुएं न्यारी रहती है
सुना है सब बेटों के घर
माँ बारी बारी रहती है
मकान वो ही घर कहलाता है
जिस घर में नारी रहती है
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
तारी : हावी रहना, तल्लीन रहना
न्यारी : अलग
Thursday, June 1, 2023
चलो आम खाएं
एक हलकी फुलकी मजाकिया गजल
गर्मियों का उत्सव मनाएं, चलो आम खाएं
काम का प्रेशर हटायें, चलो आम खाएं
टेंशन लेने से भी कोई हल तो नहीं निकलेगा
फिर क्यूँ तनाव में आयें, चलो आम खाएं
उन लोगों को खुशिया बांटे जो दुखी हों
फिर साथ बैठकर मुस्कुराएं, चलो आम खाएं
हर समस्या का कोई न कोई हल तो निकलेगा
काटकर खाएं या आमरस बनाएँ, चलो आम खाएं
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
Monday, May 29, 2023
कैसे निकलेंगे
ये तेरी यादों के समंदर से हम बाहर कैसे निकलेंगे
अपने चेहरे से जो जाहिर है, छुपाकर कैसे निकलेंगे
मयकदे से हम मयकश तो निकल जायेंगे यूँ ही
ये वाइज़ दुनियां से मुंह छुपाकर कैसे निकलेंगे
सुना है तेरे आशिकों का धरना है तेरी गली में
तुझसे मिलने आये तो फिर बाहर कैसे निकलेंगे
इस शहर में हर शक्श तेरा ही तो दीवाना है
तेरी खबर ना आई तो अखबार कैसे निकलेंगे
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
तेरे बगैर भी जीना, कोई मुश्किल तो नहीं
तेरे बगैर भी जीना, कोई मुश्किल तो नहीं
सब कुछ तो है वैसा ही, बस एक दिल तो नहीं
तू नहीं तो क्या तेरी यादें तो बसर करती है
घर चाहे खाली हो मेरा, खाली दिल तो नहीं
ख़याल तेरे सताते है मुझको भी दिन रात
माना सख्त-दिल हूँ मगर, संग-दिल तो नहीं
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
उनके बिना हम कितने अकेले पड़ गए जेसे दिल पर कईं तीर नुकीले पड़ गए उदु के साथ वक्त ए मुलाक़ात पर हमें देख कर वो पीले पड़ गए बीच तकरार में अपन...
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मैं इसलिए डरता हूँ कहीं जाने से मैं पर्दा रख पाता नहीं जमाने से खुली किताब हूँ मुझे पढ़कर लोग बाज आते नही मुझे सताने से मेरा चमन है मैंने इसे...
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तेरे बगैर भी जीना, कोई मुश्किल तो नहीं सब कुछ तो है वैसा ही, बस एक दिल तो नहीं तू नहीं तो क्या तेरी यादें तो बसर करती है घर चाहे खाली हो...
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सता लो चाहे जितना एक लफ़्ज़ ना होठों से निकलेगा पर मैं रोया तो मैरा आँसू तेरी आँखों से निकलेगा वक़्त है बुलंदी का तो कुछ भलाई के काम करो वस...