hi friends:
I tried to write this gajal in the extreme boring class of Retail Management, plz have a look and if u can find some good modifications/improvements than plz tell me,
कसमे खाते थे जो साथ जीने की, और मरने की,
आहिस्ता आहिस्ता बन गए अनजान, हमें खबर न थी |
खोजते रहे राहो में जिनको, बिछडा मीत जानकर,
वो अरसे से खड़े थे मंजिल पर, हमें खबर न थी |
जी रहे थे जिनके सहारे, जो रहे थे निगहबान हमारे,
वही बनेंगे हमारे कातिल, हमें खबर न थी |
डूब गए मझधार में "मौन", हम जिनको बचाने की चाह में,
वो खड़े देख रहे थे साहिल पर, हमें खबर न थी |
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"