26 जनवरी 2011 की शाम को ये पंक्तिया लिखी थी ...
वो जब याद आती है... बहुत याद आती है ...
वो पहली मुलाकात में नजरे झुकाती, शर्माती
चोरी चोरी वो हमे देखकर
सहेली के कानो में कुछ बतलाती
नज़रे मिलते ही क्यों सहम जाती है
वो जब याद आती है, बहुत याद आती है |
वो जब याद आती है... बहुत याद आती है ...
वो पहली मुलाकात में नजरे झुकाती, शर्माती
कांपते होंठों से कुछ कह जाती
चोरी चोरी वो हमे देखकर
सहेली के कानो में कुछ बतलाती
नज़रे मिलते ही क्यों सहम जाती है
वो जब याद आती है, बहुत याद आती है |
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"