Friday, February 4, 2011

चल दिए

ये पंक्तिया जो भोपाल में बैंक के ट्रेनिंग कॉलेज में बिताए कुछ दिनों में लिखी थी ,,,, पेश-ऐ-खिदमत है ...

जहाँ रौशनी दिखाई दी, उधर ही चल दिए
उसे पाने की आस में, सहसा ही चल दिए |

वक़्त बेवक्त सताती है यादें उनकी
वो ख्वाब में आये और नींद उड़ा कर चल दिए |

छौड़ के इस हाल में मुझको वो कुछ यूँ हुए रुखसत 

मानो के जलसा देखने आये थे, चल दिए 

जलाये थे चिराग अरसे से, जिनकी इंतज़ार में
वो बेरहम आये तो 'मौन', पर बुझाकर चल दिए |

उनके बिना हम कितने अकेले पड़ गए जेसे दिल पर कईं तीर नुकीले पड़ गए उदु के साथ वक्त ए मुलाक़ात पर हमें देख कर वो पीले पड़ गए बीच तकरार में अपन...