नवम्बर 2010 में लिखी ये कविता पेश कर रहा हू,,,, आशा है पसंद आएगी...
जब तेरी यादो का मंजर, मेरी आँखों पर छा जाता है
दिल तुझको तब पास ना पाकर, रो पड़ता है, घबराता है
बोले तब कोई कुछ भी, आवाज तुम्हारी आती है
जिसको देखू उसमे मुझको, सूरत तेरी दिख जाती है
बैठा होता हू मैं अकेला पर, एहसास तुम्हारा होता है
आईना भी अब तो मुझको, तेरी परछाई दिखलाता है
सोता हूँ रातों को चेहरे पर, तेरी साँसे टकराती है
तेरे तन की भीनी खुशबु, मेरी साँसे महकाती है
तब डूब जाता हूँ ख्वाबों में, तू परी बनकर आती है
होठों से कुछ बतलाती नहीं, पर आँखों से सब कह जाती है
इन आँखों की बातें सुनकर मेरा दिल भर आता है
तुझसे बिछड़ने का दोषी दिल, खुद को ही ठहराता है
फिर से हिम्मत कर ये दिल तुझको पाने को ललचाता हैं
अब तक जो ना कह पाया था, हिम्मत करके कह जाता है
पर इससे पहले की तू हाँ कर दे, वो सुनहरा ख्वाब टूट जाता है
में हकीकत में पाता हूँ खुद को, अकेला, अधुरा, अनजाना सा
दिल खुद को तब अपने ही हाथों, लूटा लूटा सा पाता है.....
लूटा लूटा सा पाता है.....
जब तेरी यादो का मंजर, मेरी आँखों पर छा जाता है
दिल तुझको तब पास ना पाकर, रो पड़ता है, घबराता है
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"