वो किताब में रखा फूल, अब तलक सूखा नहीं
तौबा तेरा वो मुस्कुराना, मैं अभी भूला नहीं
साल-दर-साल मिटते रहे, पन्नों पे लिखे हर्फ मगर
एक तेरे उस फूल की खुशबू है कि जाती नहीं |
भीड़ में भी बहुत अकेला मायूस हो जाता हूँ मैं
जब के तुम आने का वादा करती हो, आती नहीं
एक वो भी वक़्त था की रोज मिल जाते थे हम
हद है तुम अब ख्वाब में भी, आती नहीं, जाती नहीं |
बहुत हुआ परदेस की अब लौट जायें गाँव को
हम नहीं तो आँगन में चिड़ियाँ, राग-मधुर गाती नहीं
माँ का हाल लिखा है, घर से आये सन्देश में
कुछ भी मेरी पसंद का वो, बनाती नहीं, खाती नहीं |
अबकी होली सोचा है, मनाएंगे अपने गाँव में
शहर में रंग बिरंगी टोलियाँ, घर हमारे आती नहीं |
मिल जुल के सब मनाते थे, होली हो या दिवाली
यहाँ तो रंग हो या मिठाइयाँ, एक दूजे के घर जाती नहीं |
बचपन भी क्या खूब था, कंचों में बिकती थी खुशियाँ
अब सारी दौलत के बदले भी, नींद तक आती नहीं |
जितने में गरीबी अय्याशी से महीना काट लेती थी
हाय अमीरी, उतने में दो वक़्त की रोटी आती नहीं |
तौबा तेरा वो मुस्कुराना, मैं अभी भूला नहीं
साल-दर-साल मिटते रहे, पन्नों पे लिखे हर्फ मगर
एक तेरे उस फूल की खुशबू है कि जाती नहीं |
भीड़ में भी बहुत अकेला मायूस हो जाता हूँ मैं
जब के तुम आने का वादा करती हो, आती नहीं
एक वो भी वक़्त था की रोज मिल जाते थे हम
हद है तुम अब ख्वाब में भी, आती नहीं, जाती नहीं |
बहुत हुआ परदेस की अब लौट जायें गाँव को
हम नहीं तो आँगन में चिड़ियाँ, राग-मधुर गाती नहीं
माँ का हाल लिखा है, घर से आये सन्देश में
कुछ भी मेरी पसंद का वो, बनाती नहीं, खाती नहीं |
अबकी होली सोचा है, मनाएंगे अपने गाँव में
शहर में रंग बिरंगी टोलियाँ, घर हमारे आती नहीं |
मिल जुल के सब मनाते थे, होली हो या दिवाली
यहाँ तो रंग हो या मिठाइयाँ, एक दूजे के घर जाती नहीं |
बचपन भी क्या खूब था, कंचों में बिकती थी खुशियाँ
अब सारी दौलत के बदले भी, नींद तक आती नहीं |
जितने में गरीबी अय्याशी से महीना काट लेती थी
हाय अमीरी, उतने में दो वक़्त की रोटी आती नहीं |
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
ladke mast likha hai...
ReplyDeleteधन्यवाद भाई,,
ReplyDeletedil ko chhu gayi.
ReplyDelete