आँखें बंद करते ही वो सपना याद आता है
मुझे गाँव का वो गुजरा ज़माना याद आता है
शहर की ये चमक दमक अच्छी नहीं लगती
हमें गाँव का कच्चा घर-अंगना याद आता है ।
यहाँ पड़ोसी को पड़ोसी पहचानता तक नहीं
सारा गाँव एक परिवार था कितना याद आता है ।
यहाँ पड़ोसी को पड़ोसी पहचानता तक नहीं
सारा गाँव एक परिवार था कितना याद आता है ।
पड़ौसियों को पार्किंग के लिए झगड़ते देखा तो
हमें बाबा का दो बीघे का अहाता याद आता है।
किसी बुज़ुर्ग की बेवक्त मौत की ख़बर सुनते ही
सारे गाँव का वो खाना न खाना याद आता है ।
बिना तेल के ये कमबख़्त कारें भी नहीं चलती
हमें वो बैलगाड़ी के पीछे लटकना याद आता है ।
सब्ज़ी मंडी में फलों का मौलभाव करते करते
हमें वो आम-औ-जामुन का बग़ीचा याद आता है ।
वो यादें इस ज़ेहन से कभी मिट ही नहीं सकती
जितना भूलना चाहूँ "मौन" उतना याद आता है ।
किसी बुज़ुर्ग की बेवक्त मौत की ख़बर सुनते ही
सारे गाँव का वो खाना न खाना याद आता है ।
बिना तेल के ये कमबख़्त कारें भी नहीं चलती
हमें वो बैलगाड़ी के पीछे लटकना याद आता है ।
सब्ज़ी मंडी में फलों का मौलभाव करते करते
हमें वो आम-औ-जामुन का बग़ीचा याद आता है ।
वो यादें इस ज़ेहन से कभी मिट ही नहीं सकती
जितना भूलना चाहूँ "मौन" उतना याद आता है ।
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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