लड़ तो हम खुदा से लेते, तुम कहते तो सही|
सारे जग से बैर ले लेते तुम कहते तो सही|
जग से न हारे हम, हारे तुम्हारी ख़ामोशी से
सारा दहर जीत लेते, तुम कहते तो सही |
तुम भी कौनसे इस कदर खामोश-मिजाज थे,
हम भी पर्दा-ए-हया हटा देते, तुम कहते तो सही|
हज़ारों कोशिशें की तुमने, तर्के-वफ़ा की हमसे,
हम खुद ही चल दिए होते, तुम कहते तो सही |
लब न खोलते तुम, कुछ इशारा ही कर देते,
हम भी न “मौन” रहते, तुम कहते तो सही |
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
28/06/2019