क्या हुआ जो चाँद पर पहुंचे नहीं
ये क्या कम है कि हम
चाँद की दहलीज जाकर
उसके दरवाजे पे अपनी
दस्तक देकर आये है |
ग्यारह वर्षों के परिश्रम
के स्वेद की चंद बूंदे
मंजिल पर गिरा कर आये है |
चाँद रिश्ते में भी है मामा हमारा
वहां जाना पैदाइशी हक़ हमारा
आज गिरे है कल उठेंगे
फिर चलेंगे और एक दिन
कर लेंगे फतह
हम वो सतह
आज जिसके पास जाकर आये है |
चाँद पर उतरे नहीं पर
चाँद फतह तो कर लिया
इस कदर समर्पण से तुमने
दिल फतह तो कर लिया
राष्ट्र गौरव के. सिवन तुम
रुक न जाना राह में
तुमने ऐसे कितने पंछी
मंजिल तक पहुचाये हैं |
ये क्या कम है कि हम
चाँद की दहलीज जाकर
उसके दरवाजे पे अपनी
दस्तक देकर आये है |
ग्यारह वर्षों के परिश्रम
के स्वेद की चंद बूंदे
मंजिल पर गिरा कर आये है |
चाँद रिश्ते में भी है मामा हमारा
वहां जाना पैदाइशी हक़ हमारा
आज गिरे है कल उठेंगे
फिर चलेंगे और एक दिन
कर लेंगे फतह
हम वो सतह
आज जिसके पास जाकर आये है |
चाँद पर उतरे नहीं पर
चाँद फतह तो कर लिया
इस कदर समर्पण से तुमने
दिल फतह तो कर लिया
राष्ट्र गौरव के. सिवन तुम
रुक न जाना राह में
तुमने ऐसे कितने पंछी
मंजिल तक पहुचाये हैं |
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"