खुदाया जिंदगी में इक दिन ऐसा हो पाता
उनकी खता होती और मैं खफ़ा हो पाता।
सारे ऐब सहकर भी तुझसे खफ़ा नहीं
इससे ज्यादा तो क्या मैं बा-वफ़ा हो पाता।
जो तेरे साथ रहकर भी खुश न रह सके
बीमार है वो शक्श काश शिफा हो पाता।
रिश्तों में नुकसान का सबब है 'मौन' रहना
गुफ़्तगू चलती रहे तब कहीं नफा हो पाता।
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"