आंखों से वो चश्मा वहम का उतार कर
तू देख मुझे फिर से नजर में उतार कर
तानों से तो तकरार में जीत मेरी तय है
एक काम कर तू यार खंजर से वार कर
ये क्या बात बात पर यूँ खफा हो जाना
तू इश्क कर रहा है तो शिद्दत से यार कर
सय्याद को क्या लेना पंछी के दर्द से
अपना मजहब निभा, तू तो शिकार कर।
वो इश्क़ का नहीं अना का मरीज है
कुछ तो इलाज उसका ए मेरे यार कर।
वफ़ा अगर हो तो वफ़ा की मानिंद हो
जफ़ा है तो तीर सीने के आर-पार कर।
"मौन" तू ये किस्सा मुकम्मल ही कर दे
यूँ क्या मिलेगा मुझको टुकड़ों में मार कर।
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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