उसकी इस सुर्खी-ए-रुख़सार के लिए
मैं एक गुलाब ले आया इज़हार के लिए।
और फिर मैंने इंतज़ार में हयात गुजार दी
उससे एक रोज नशे में किये करार के लिए।
मुफलिस को नहीं मतलब खूबी-ए-शै से
कीमत मायने रखती है खरीदार के लिए।
हमने दांव पर लगा दी सारी कमाई अपनी
उनसे अकेले चंद लम्हों की गुफ्तार के लिए।
उनसे एक डाल न काटी गयी बैसाखी बनाने को।
जिन्होंने जंगल काट दिए हथियार के लिए।
ये सिक्कों की खनखनाहट किस काम की
तारीफ मायने रखती है फनकार के लिए ।
जुरअत-ए-ईमानी में मुफलिसी नसीब है
कभी खुशामद नही लिखी सरकार के लिए।
अपना खून पसीना बोकर अनाज उगाता है
कोई नहीं सोचता उस काश्तकार के लिए।
"मौन" इश्क़ की बातें कर लो और एक पहर
जब तक तुम्हे कोई मुद्दा मिले तकरार के लिए।
© लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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