एक अरसे से दिल में गम पलता रहा
मैं उससे बिछड़ कर यूँ पिघलता रहा
कोई दोस्त होता तो ये हाल न होता
मैं अकेला था यहां रोज जलता रहा
जो मिरा मुदर्रिस था वही दर्स था मिरा,
वो मुझे पढ़ाता रहा मैं उसे पढ़ता रहा।
वो सच जान कर रूठ ना जाए कहीं
रोज एक नयी कहानी मैं गढ़ता रहा
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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