वो बिना इश्क़ सोगवार है हद्द है
और इश्क़ भी नागवार है हद्द है
जब पता ही था वो बेवफा है
क्यों ये दिल बेकरार है हद्द है
बस ख्वाब में मिलने की आस है
और आंखों से नींद फरार है हद्द है
जिन रिश्तों की कसमें खायी थी
उन रिश्तों में भी दरार है हद्द है
कोई आसरा ही नहीं रहा लेकिन
एक उम्मीद बरकरार है हद्द है
"मौन" सच लिए खड़े हो यहाँ?
ये झूठ का बाजार है, हद्द है।
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
Words do have a beauty of their own and this is one such creation.
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