मैं इसलिए डरता हूँ कहीं जाने से
मैं पर्दा रख पाता नहीं जमाने से
खुली किताब हूँ मुझे पढ़कर लोग
बाज आते नही मुझे सताने से
मेरा चमन है मैंने इसे खून से सींचा
कैसे चला जाऊं इस आशियाने से
जरा संभल कर वो सय्याद है आखिर
बाज आएगा नहीं जाल बिछाने से
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"