अब कितना टाइम है मेरे पास
जब से तुम गयी हो, मैं शाम को घर आकर
घंटा भर सोफे पे आराम करता हूँ
क्योंकि कोई भी तो नहीं जो ये कहे
कि लो इन बच्चों को संभालो अब,
सारा दिन मैंने संभाला है।
और मैं ये कहूँ की थक गया हूँ यार
आफिस में कितना काम होता है
तुम्हें तो मालूम है जाना।
बड़ी देर तक जागता हूँ मैं आजकल,
जबकि कोई नहीं है देर तक शोर मचाने वाला,
चूंकि इतने सन्नाटे का आदि नही रहा मैं अब
आदत सी हो गयी है तुम सबके शोर की
तुम्हें तो मालूम है जाना।
कहीं घर में कुछ बिखरा भी नहीं रहता अब
ना तो कोई सामान बेतरतीबी से रखा होता है
ना ही कोई बोतल या डब्बे का ढक्कन खुला मिलता है
आखिर किस चीज़ पे गुस्सा करूँ या चिढ़ जाऊं
समझ नही आता
खैर चिढुंगा भी किसपे, तुम तो हो ही नहीं,
पर बिना गुस्सा किये मुझसे रहा भी तो नहीं जाता
तुम्हें तो मालूम है जाना।
और ये जो तुम्हारे होने की जो आदत डाल दी है तुमने
मैं अक्सर बाथरूम में नहाने घुस जाता हूँ बिना टॉवल लिए
और नहाने के बाद याद आता है कि तुम तो नहीं हो
ऐसी बहुत सी चीजें है जो अब याद नहीं रहती मुझे
तुम्हे तो मालूम है जाना।
तुम जो ऐसे चली जाती हो
एक एक दिन एक साल सा निकलता है मेरा
वैसे यूँ तो सब काम आता है मुझे
पर बिना तुम्हारी रोकटोक के हर काम बोरिंग लगता है
और मुझे बोरियत बिल्कुल पसंद नहीं।
तुम्हें तो मालूम है जाना।
©लोकेश ब्रह्मभट्ट "मौन"
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