भृगु लेक ट्रेक: एक दिव्य झील की पदयात्रा
(Bhrigu Lake Trek: Trekking to a Divine Lake)
लोकेश ब्रह्मभट्ट
सहायक महाप्रबंधक,
भारतीय खाद्य निगम, श्रीगंगानगर
भृगु
झील कुल्लू घाटी में मनाली से ऊपर की पहाड़ियों में स्थित है, जहाँ मनाली से
रोहतांग के रास्ते में स्थित गुलाबा नामक जगह से ट्रैकिंग करते हुए जोंकर थाच व
रोला-खुली होते हुए पंहुचा जा सकता है | यूँ तो पहाडो की रानी मनाली हिल स्टेशन
होने के नाते हमेशा से ही सैलानियों के दिल में बसता रहा है परन्तु इस हिल स्टेशन
का महत्व इसके नजदीक स्थित ट्रैकिंग स्पॉट्स के कारण बहुत ज्यादा बढ़ जाता है|
व्यास कुंड, भृगु लेक, हम्पटा पास, देव
टिब्बा जेसे करीब 20-25 ट्रेक रुट्स यहाँ स्थित है जिन पर ट्रैकिंग करने हेतु
हजारो की तादाद में सैलानी यहाँ हर साल आते है | इन्हीं में से एक है भृगु लेक ट्रेक|
हम
चार मित्रों ने जब ट्रैकिंग पर जाने का मन बनाया तो कई ट्रेक रुट्स का अध्ययन किया
| चूँकि हम मानसून ट्रेक के लिए जा रहे थे अतः मानसून ट्रेक्स में से भृगु लेक ही हमें
सर्वाधिक आकर्षक एवं रोमांचकारी लगा | इन्टरनेट पर भृगु लेक की तसवीरें देखकर एवं
विवरण पढ़ कर मालूम हुआ की यह ट्रेक मुख्यतः रास्ते में मिलने वाले अत्यंत खूबसूरत अल्पाइन
मीडोज (पहाड़ी चारागाह) एवं उनमे चरने वाले जंगली घोड़ों के लिए प्रसीद्द है जो की
भृगु झील पर जाकर पूर्ण होता है | जून माह तक यह ट्रेक बर्फ से ढका होने के कारण
स्नो ट्रेक के रूप में प्रसीद्ध है तथा जून के बाद अगले तीन महीनें मानसून ट्रेक
के रूप में इस मार्ग पर ट्रैकिंग की जा सकती है | यह ट्रेक मनाली से रोहतांग पास
जाने वाले रास्ते पर स्थित गुलाबा नामक स्थान से शुरू होता है जो की मनाली से करीब
20 किमी की दूरी पर स्थित है | इस ट्रेक का गंतव्य भृगु झील किसी भी प्रकार के सड़क
मार्ग से जुडा हुआ नहीं है एवं ट्रैकिंग से बनती बिगडती पगडंडियाँ ही वहां पहुँचने
का एकमात्र मार्ग है | भृगु झील का सम्बन्ध इतिहास में महर्षि भृगु से होने के कारण
इस स्थान को दिव्य एवं पवित्र माना जाता है |
हम
चारो दोस्तों ने दिल्ली में इकट्ठे होकर वहाँ से अपनी यात्रा आरम्भ की | इसके लिए
हमने जुलाई माह का समय चुना क्योंकि उस समय बर्फ लगभग पिघल चुकी होती है तथा ट्रेकिंग
थोड़ी आसान हो जाती है | दिल्ली से मनाली जाने के लिए हवाई यात्रा से भी पंहुचा जा
सकता है जिसके लिए दिल्ली से भुन्तुर हवाई अड्डे के लिए उड़ान उपलब्ध है एवं सड़क
मार्ग से भी जाया जा सकता है जिसके लिए दिल्ली के ISBT कश्मीरी गेट से हर आधे घंटे
समझा एवं एक निजी ट्रेवल् कंपनी की रात्रि वॉल्वो बस में बैठे | मनाली का रास्ता
GT रोड से होकर चंडीगढ़ होते हुए हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करता है जहाँ से बिलासपुर,
सुंदरनगर, मंडी व भुंतर होते हुए मनाली पहूँचता है | रात्रि में मुरथल में GT रोड
पर मिडवे स्टॉपेज में आप हरियाणा के प्रसिद्ध मिडवे ढाबों पर भोजन का आनंद ले सकते
है | चूँकि हम खाना दिल्ली में हममें से एक मित्र के घर से साथ लेकर चले थे तो
हमने बस में ही घर के खाने का लुत्फ़ उठाया | हिमाचल में प्रवेश करने के बाद
घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर चढ़ाई करती बस में डर के साथ एक अलग ही रोमांच का एहसास
होता है | राष्ट्रीय राजमार्ग होते हुए भी यह सड़क अभी पूरी तरह डबल लेन भी नहीं है
एवं बमुश्किल दो वाहन साथ चल पाते है, ऐसे में अत्यंत अनुभवी उन बस चालकों को
तीव्र गति में क्रासिंग एवं ओवरटेक करते हुए देखना खतरनाक रोमांच का अनुभव करवाता
है | करीब 13 घंटे का सफ़र तय करते हुए हम अंततः मनाली पहुंचे | ट्रैकिंग के लिए
हमने एक प्रोफेशनल ट्रेकिंग कंपनी इंडियाहाईक्स के पास रजिस्ट्रेशन करवा लिया था |
चूँकि हम सुबह 10:30 बजे मनाली पहुँच चुके थे एवं ट्रैकिंग के लिए इंडियाहाईक्स का
रिपोर्टिंग समय 01:00 बजे दोपहर व स्थान रामबाग सर्किल निर्धारित था, हमने रामबाग
सर्किल के पास ही एक होटल में एक कमरा लिया एवं नहा धोकर व नाश्ता करके 01:00 बजे
रामबाग सर्किल पहुँच गए |
रामबाग़
सर्किल पर पहले से ही इंडियाहाईक्स के ट्रेक लीडर आशीष एवं अन्य ट्रैकिंग हेतु आये
हुए साथी पहुँच चुके थे | मेडिकल फिटनेस प्रमाणपत्र एवं अन्य औपचारिकताओं के बाद हम इंडियाहाईक्स
द्वारा उपलब्ध कराए गए दो टाटा सूमो में बैठ कर मनाली से गुलाबा के लिए रवाना हुए | रास्ते
में पलचान नामक स्थान पर इंडियाहाईक्स का कार्यालय है जहाँ से हमनें ट्रेकिंग के
लिए जरूरी सामान जेसे ट्रेक पोल, ट्रेकिंग शूज, पोंचो आदि किराए पर ले लिया |
पहला
दिन: गुलाबा से जोंकर थाच
शाम
के करीब 04:30 बजे हम सूमो से गुलाबा पहुंचे एवं अपने बेकपेक्स जिनमे हमारा सारा सामान
था वो इंडियाहाईक्स के खच्चरों पर लाद दिया | हालांकि बेकपेक्स खुद अपने कंधो पर
भी उठाया जा सकता था काफी लोग उठा भी रहे थे, पर चूँकि हम चारो पहली बार ट्रैकिंग
का अनुभव ले रहे थे इसलिए हमने खुद न उठाना ही उचित समझा | कुल मिला कर इस बैच में
16 लोग थे जिनमे से चार हम थे व तीन कपल भी थे | ट्रैकिंग में अपने साथ कुछ सामान
अत्यावश्यक होता है जो की एक छोटे बैग जिसे डे-पैक कहा जाता है उसमें रखा जाता है
जिसमे कुछ तुरंत ऊर्जा दायक खाद्य सामग्री, पानी की बोतलें प्रमुख है | चूँकि यह
हमारा पहला अनुभव था एवं हमें इसके बारे में जानकारी नहीं थी, अतः हममें से कोई भी
डेपैक लेकर नहीं आया था | अतः हम लोगो ने एक एक्स्ट्रा बैग को हम चारो का सम्मिलित
डे-पैक बनाया एवं उसे बारी बारी से उठाने का निर्णय लिया |
करीब
04:45 बजे हमने गुलाबा से चढ़ाई प्रारम्भ की | शुरू में ये बड़ा आसान नजर आ रहा था
पर बहुत जल्दी ही हमें ये एहसास हो गया की
अलग अलग डे-पैक ना लाकर हमनें बहुत बड़ी गलती कर दी है | पहाड़ी चढ़ते समय उस
सम्मिलित डे-पैक का वजन असहनीय सा प्रतीत होता था एवं बारी बारी से जैसे तैसे उसको
ढोकर हम लोग अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे थे |
शाम
के समय सूर्यास्त से पूर्व करीब एक घंटा हमने कैंप साईट के आसपास के सुरम्य
वातावरण का आनंद लिया और फोटोग्राफी की | नजदीक के एक ऊँचे स्थान पर मोबाइल
नेटवर्क के सिग्नल मिल रहे थे जिससे हमने परिवारजनों से बात भी की | सूर्यास्त के
पश्चात भोजन हेतु हम डाईनिंग टेंट में इकट्ठे हुए | खाने हेतु बर्तन सबको अपने साथ
लाने होते है एवं पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए डिस्पोजल बर्तन उपयोग करने की भी
वहां अनुमति नहीं है | अतः हमने अपने बर्तनों में कुकिंग टीम के द्वारा बनाया गया
उम्मीद से कहीं बेहतर खाना खाया | हमारी उम्मीद के विपरीत वहां का खाना बिलकुल
मैदानी उत्तर भारतीय खाने जेसा ही था व हमें बिलकुल घर के से खाने का एहसास हुआ | खाने के बाद डाईनिंग टेंट में ही बैठ कर हमने कुछ अंत्याक्षरी, ड्रम चराज जैसे खेल
खेले | रात के समय वहाँ आसमान का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता था | शायद कई
सालों बाद इतना साफ़ आसमान इतने असंख्य तारों के साथ नजर आ रहा था वर्ना शहरों के
प्रदूषित आसमान में अब तारों की दृश्यता भी बहुत कम् हो गयी है | कुछ देर टहलने के
बाद करीब नो बजे हम सोने के लिए अपने अपने टेंटों में चले गए|
दूसरा
दिन: जोंकर थाच से रोला-खुली
दूसरे
दिन सुबह 4 बजे उठ कर हम लोग आगे की यात्रा के लिए तैयार होने लग गए | सुबह नाश्ता
करने के बाद 6 बजे निकलने का समय नियत था और हमारी टीम ने उसमे कोई देरी नहीं की |
सुबह का नाश्ता भी काफी शुद्ध एवं सेहत भरा था | हम पिछले दिन के मुकाबले दुगने जोश
एवं उर्जा के साथ अगली कैंप साईट रोला-खुली के रवाना हुए | कुछ दूर चलते ही हमें एहसास
हो गया की आज मौसम हमारी यात्रा को आसान नहीं होने देगा | हलकी हलकी फुहार धीरे धीरे
तेज़ बारिश में बदल रही थी | हम सबनें अपने अपने पोंचो (रेन कवर) निकाल कर खुद को
एवं अपने बेग को ढक लिया था और धीरे धीरे बारिश में आगे बढ़ रहे थे | बीच बीच में यात्रियों
का सामान ढोने वाले घोड़े एवं खच्चर और उनके मालिक ऐसे दोड़ते हुए हमसे आगे निकलते
थे की उनको देख कर शरीर में एक अलग ही उर्जा का संचार हो जाता था और हम भी थकान और
बारिश को भूल कर अपना ट्रैकिंग पोल का सहारा लेते हुए आगे बढ़ते जाते थे | थोडा ही
दूर चलने के बाद वृक्षपंक्तियाँ समाप्त सी हो गयी और दूर दूर तक कोई वृक्ष नजर
नहीं आता था | वनस्पति के नाम पर केवल मीडोज (पहाड़ी घास के मैदान) ही नजर आते थे |
मीडोज में खिलते रंग बिरंगे फूल उन पहाड़ी रास्तों को इतना सुन्दर बना देते थे की उस
दृश्य को देख कर किसी परिकथाओं पर बनी फिल्मों के दृश्य सजीव हो उठते थे | करीब दो घंटे की यात्रा के बाद बारिश थम सी गयी
एवं आसमान कुछ साफ़ नजर आने लगा | इतनी बारिश के बाद भी उन पहाडियों पर अल्पाइन
मीडोज की बाहुल्यता के कारण कोई विशेष कीचड़ जैसी स्थिति नहीं हुई थी वरन ट्रेक रूट
तो बिलकुल सामान्य बना हुआ था | हाँ यदा कदा हमें अपने ट्रैकिंग शूज के नीचे जमी
हुई गीली मिट्टी को हटाना पड़ता था ताकि जूते उन संकरी पगडंडियों पर फिसले नहीं और
उनकी पकड़ जमीन पर बनी रहे | राह में हम लगभग हर एक किलोमीटर यात्रा के बाद विश्राम
हेतु पड़ाव डाल देते थे जिससे हमारी टीम में पीछे छूटे हुए लोग साथ हो जाते थे और शरीर
में थोड़ी उर्जा वापस आ जाती थी | करीब साढे तीन
घंटे की यात्रा पूरी करने के बाद
हम लोगो को पहला जल स्त्रोत नजर आया | पहाड़ी पर संकरी पगडण्डी पर जहाँ एक तरफ गहरी
खायी थी वहीँ दूसरी तरफ पहाड़ी थी और उस पगडण्डी को बीच में काटती हुई एक जलधारा बह
रही थी हम सबने अपनी पानी की बोतलों को भर लिया और सावधानीपूर्वक जलधारा को पार
करते हुए आगे बढ़ गए | करीब १० मिनट चलते ही हमें अपनी कैंप साईट नजर आने लगी थी | रोला-खुली
कैंप साईट की समुद्र तल से ऊँचाई करीब 12566 फीट है एवं ये बमुश्किल एक हेक्टेयर
का एक सपाट टुकड़ा है जो चारो तरफ से पहाडियों से गिरा होकर एक छोटी सी जलधारा के
किनारे स्थित है इस जगह से एक दिशा में दूर स्थित हनुमान टिब्बा एवं अन्य बर्फ से
ढकी पर्वत चोटियों के दर्शन किये जा सकते है | यहीं से हमको अगली सुबह हमारे गंतव्य स्थल भृगु
लेक के लिए चढ़ाई शुरू करनी थी |
रोला-खुली
में हमारे साथ एक-दो और भी दूसरे दल अपने कैंप लगाए हुए थे इसलिए वहाँ अधिक सुनसान
न होकर थोड़ी चहल पहल थी | शाम को हमने हमारे कुकिंग टीम का बनाया हुआ अत्यंत
स्वादिष्ट एवं सेहतमंद खाना खाया और उसके बाद मिठाई में गुलाबजामुन ने हमें अपने
घरों की याद दिला दी | हम चारों ने विशेषतः गुलाबजामुन का भरपूर लुत्फ़ उठाया |
उसके बाद हमारे ट्रेक लीडर ने हमारा रक्तचाप एवं ऑक्सीजन स्तर चेक किया और उसके
बाद हमने कुछ खेल खेले | देश के विभिन्न हिस्सों से आये हुए लोगो के साथ चर्चा और
खेल खेलने में भी एक अलग आनंद का अनुभव हुआ | हमारी टीम में कुछ चार लोग प्रवासी
भारतीय भी थे जो अमेरिका व दुबई से हमारे बीच आये थे | सबके अपने अपने अनुभव हमने
सुने और कुछ अनौपचारिक बातें भी की |
तीसरा
दिन: रोला-खुली से भृगु झील व वापस रोला-खुली
हमारे
ट्रेक लीडर आशीष ने हमें बता दिया था की यात्रा के इस भाग में सब तरह की बाधाएं
आने वाली थी जेसे की पथरीली चट्टानें, खड़ी चढ़ाई, संकरे जोखिम भरे रास्ते और कहीं
कहीं बर्फ भी | हम सब लोग इन बाधाओं का सामना करने को तैयार थे | एक एक करके हम रास्ता
तय करते जा रहे थे | बारिश लगभग पूरे रास्ते मानों हमारे साथ ही चल रही थी जेसे वो
भी हमारी ही टीम का हिस्सा हो | करीब डेढ़ घंटा चढ़ाई करने के बाद बारिश थोड़ी रुक सी
गयी और सूर्यदेव के दर्शन हुए | यहाँ तक आते आते हम लोग अल्पाइन मीडोज को भी काफी
पीछे छोड़ आये थे आगे की राह कुछ पथरीली सी नजर आ रही थी जिसके बारे हमें यात्रा के
प्रारंभ में बताया गया था | मेरे जीवन में पहली बार मैं इस तरह के रास्ते पर चढ़ाई
कर रहा था | दूर दूर तक केवल छोटी बड़ी पथरीली चट्टानें नजर आ रही थी और उन्ही पर
पाँव रखते हुए हमें चलना था | चाह कर भी भूमि पर मिट्टी देख पाना संभव नहीं था |
ऐसा प्रतीत होते था की यहाँ अभी-अभी कोई भूकंप आया हो या कोई बड़ी पत्थर की खदान
में विस्फोट होकर पत्थर के टुकड़े सब जगह बिछ गए हो | हम एक-एक पत्थर पर पाँव रखते
हुए सावधानीपूर्वक आगे बढ़ते रहे | कहीं कहीं चट्टानों के बीच बर्फ जमी हुई भी नजर
आ रही थी जो की सर्दी के मौसम के अवशेष के रूप में अभी तक बची हुई
थी | चहुँऔर देखने पर आस पास की सभी पहाड़ी
चोटियों पर भी बर्फ जमी हुई थी |
करीब ढाई घंटे की यात्रा के बाद हम लौट कर अपने
रोला-खुली कैंप साईट पर पहुंचे और फिर सारा दिन आराम और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद
लेने में बिताया |
चौथा
दिन: रोला-खुली से गुलाबा
अगले दिन सुबह
जल्दी रवाना होकर अल्पाइन मीडोज से ढके उन्हीं मैदानी और पहाड़ी रास्तों को पार
करते हुए हम लोग करीब दोपहर दो बजे तक हम लोग गुलाबा पहुँच गए जहाँ इंडियाहाईक्स
की टीम अपने वाहनों के साथ हमें मनाली तक छोड़ने के लिए तैयार खड़ी थी | इस चार दिन की
पैदल यात्रा अनुभव और भृगु झील का दिव्य एहसास हमारे जेहन में कभी ना भूलने वाली यादें छोड़ गया
जो आज भी जीवंत है |
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